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Everything to Know About Pokhran Nuclear Test 1998 / पोखरण में परमाणु परीक्षण की कहानी

Pokhran Nuclear Test / पोखरण में परमाणु परीक्षण की कहानी

Pokhran Nuclear Test1998 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के कुछ दिनों के अंदर ही पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से मुलाकात कर कहा था, सामग्री तैयार है! आप आगे बढ़ सकते हैं! संसद में विश्वास मत प्राप्त करने के एक पखवाड़े के अंदर ही वाजपेई ने डॉक्टर कलाम और डॉक्टर चिदंबरम को बुलाकर Pokhran Nuclear Test के लिए, परमाणु परीक्षण की तैयारी करने के निर्देश दे दिए थे! 

राष्ट्रपति के.आर. नारायणन 26 अप्रैल से 10 मई तक लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा पर निकलने वाले थे, उनसे चुपचाप कहा गया कि वह अपनी यात्रा कुछ दिनों के लिए स्थगित कर  दे! 

डॉक्टर चिदंबरम  की बेटी की शादी 27 अप्रैल को होने वाली  थी! उस शादी को कुछ दिनों के लिए टाला गया क्योंकि उस शादी में चिदंबरम की अनुपस्थिति से  साफ संकेत जाता, कुछ बड़ा होने जा रहा है!

डॉ कलाम ने सलाह दी कि विस्फोट बुध पूर्णिमा के दिन पूर्णमासी को किया जाए, जो 11 मई 1998 को पड़ रही थी! परमाणु शोध केंद्र के अधिकतर वैज्ञानिकों को 30 अप्रैल 1998 तक भारत के परमाणु विस्फोट करने के फैसले के बारे में बता दिया गया! 

उन लोगों ने छोटे-छोटे समूह में Pokhran Nuclear Test के लिए पोखरण की तरफ जाना शुरू कर दिया था! उन लोगों ने अपनी पत्नियों को बताया था कि वह या तो दिल्ली जा रहे हैं या ऐसी जगह सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं जहां अगले 20 दिनों तक उनसे  फोन से संपर्क नहीं किया जा सकेगा! 

मिशन को गुप्त रखने के लिए हर वैज्ञानिक Pokhran Nuclear Test के लिए नाम बदलकर यात्रा क्या कर रहा था और सीधे पोखरण जाने के बजाय काफी घूम कर वहां पहुंच रहा था कुल मिलाकर डीआरडीओ की टीम में कुल 100 वैज्ञानिक थे!

जैसे ही वह सब Pokhran Nuclear Test के लिए पोखरण पहुंचे उन सबको सेना की वर्दी पहनने के लिए दी गई! उन सबको कम ऊंचाई वाले कमरों में ठहराया गया! जिसमें लकड़ी के पार्टीशन लगे हुए थे! और उनमें मात्र एक पलंग रखने की जगह थी! 

वैज्ञानिकों को सेना की वर्दी पहनने में दिक्कत हो रही थी! क्योंकि उन्हें स्टार्च  लगे कपड़े पहनने की आदत नहीं थी! परमाणु  बम का कोड नेम था “कैंटीन स्टोर्स”! बम विस्फोटों को हरी झंडी मिलने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी कि किस तरह  मुंबई के भूमिगत वॉल्ट में रखें इन बमों को  Pokhran Nuclear Test के लिए पोखरण तक पहुंचाया जाए!

इन वॉल्ट को 80 के दशक में बनाया गया था और उन्हें हर साल विश्वकर्मा पूजा के दिन ही खोला जाता था, उस दिन वैज्ञानिक और मजदूर पूजा कर वॉल्ट के दरवाजों पर भभूत लगाते थे ! 6 प्लूटोनियम बमों को गेंद की शक्ल में बनाया गया था !

जो कि टेनिस बॉल से थोड़ी सी  बड़ी थी,  इन गेंदों का वजन 3 से 8 किलो के बीच था! इन सब को एक काले बक्से में रखा गया था, इन  बक्सों की शक्ल  सेब के कैरेट  से मिलती जुलती थी लेकिन उनके अंदर पैकिंग इस ढंग से की गई थी कि पोखरण ले जाने के दौरान बमों को कोई नुकसान न पहुंचे !

भारतीय वैज्ञानिकों का सबसे बड़ा सिर दर्द था, इन बमों को अपने ही सुरक्षाकर्मियों को बिना बताए वहां से हटवाना, सुरक्षाकर्मियों को बताया गया कि कुछ खास उपकरणों को दक्षिण में दूसरे परमाणु संयंत्र में ले जाना है! 

इसके लिए रात में विशेष गेट से ट्रकों का एक काफिला आएगा, क्योंकि मुंबई कम से कम 2:00 बजे तक तो जगी रहती है, इसलिए तय किया गया कि ट्रैफिक जाम से बचने और शक की गुंजाइश न छोड़ने के लिए सुबह 2:00 से 4:00 के बीच इन ट्रकों को बुलाया जाएगा!  

राज चिंगप्पा अपनी किताब “वेपंस ऑफ पीस – द सीक्रेट स्टोरी ऑफ इंडिया”  मैं लिखते हैं, 1 मई की सुबह तड़के चार ट्रक चुपचाप बार्क संयंत्र पहुंच गए! हर ट्रक पर  5 सशस्त्र सैनिक सवार थे! ट्रकों पर आर्म्ड प्लेट लगी हुई थी, उस पर किसी तरह का बम हमला न किया जा सके!  दो काले क्रेटों को दूसरे उपकरणों के साथ तुरंत एक ट्रक पर लाद दिया गया! 

DRDO टीम के वरिष्ठ सदस्य उमंग कपूर के मुंह से निकला, ‘हिस्ट्री इज़ नाउ ऑन द मूव’. यह चारों ट्रक तेज रफ्तार से मुंबई हवाई अड्डे की तरफ  बढ़े, जो वहां से 30 मिनट की दूरी पर था! हवाई अड्डे पर बिना उद्देश्य बताए पहले ही सारे जरूरी क्लीयरेंस ले लिए गए थे! ट्रकों को सीधा हवाई पट्टी पर ले जाया गया, जहां  एक एएन  32 ट्रांसपोर्ट विमान उनका इंतजार कर रहा था! 

हवाई जहाज के अंदर सिर्फ चार सुरक्षाकर्मियों को रखा गया था, बाहरी दुनिया को यह आभास दिया जा रहा था कि यह सेना का रूटीन ऑपरेशन है! किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था, कि उस विमान में जो बम रखे हुए थे वह पूरे मुंबई शहर को मिनटों में  नेस्तनाबूत कर सकते थे!

Pokhran Nuclear Test

सुबह तड़के AN32 विमान ने मुंबई हवाई अड्डे से  टेकऑफ किया! 2 घंटे बाद उसने जैसलमेर हवाई अड्डे पर लैंड किया, वहां पर ट्रकों का एक और काफिला उनका इंतजार कर रहा था, हर ट्रक पर हथियारों समेत सैनिक बैठे हुए थे !

जब वह ट्रकों से उतरे तो उन्होंने अपने हथियार तौलियों मैं छिपा लिए थे! Pokhran Nuclear Test के लिए जब जैसलमेर हवाई अड्डे से ट्रक निकले तो सुबह हो चुकी थी ! राज चिंगप्पा लिखते हैं की पोकरण में यह ट्रक सीधे “प्रेयर हॉल” में पहुंचे, जहां इन बमों को असेंबल किया जाना था !

जब प्लूटोनियम गेंदे जिनका कोड नेम ‘स्टोर’ था, वहां पहुंच गई तो भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष चिदंबरम की जान में जान आई! वह उनका बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, उनको याद था  की इस बार चीजें 1974 की तुलना में कितनी अलग थी!

तब परमाणु डिवाइस को उन्हें खुद अपने साथ पोखरण लाना पड़ा था! पोखरण का मौसम भी वैज्ञानिकों के सामने परेशानी खड़ा कर रहा था, प्रेयर हाउस में दुर्घटना बस आग लगने की संभावना से बचने के लिए एयर कंडीशनिंग की अनुमति नहीं दी गई थी और वैज्ञानिकों को बहुत मुश्किल परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा था, गर्मी का आलम यह था कि वैज्ञानिक हमेशा पसीने से तरबतर रहते थे, मदद करने वाले स्टाफ को जानबूझकर कम रखा गया था!   

इसलिए सतिंदर कुमार सिक्का जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिक भी स्क्रू कस रहे थे ! पोखरण में वैज्ञानिकों की टीम रात में ही काम कर रही थी, ताकि ऊपर से गुजरने वाले उपग्रह उन्हें न देख सके! राज चिंगप्पा लिखते हैं की, एक रात वैज्ञानिक कौशिक को एक उपग्रह दिखाई दिया !3 घंटे के अंदर उन्होंने 4 उपग्रहों को वहां से गुजरते हुए गिना! 

उन्होंने  डीआरडीओ टीम के सदस्य कर्नल बीबी शर्मा से कहा ‘सर लगता है उन्हें शक हो गया है कि हम कुछ कर रहे हैं, वरना एक रात में इतने सारे उपग्रहों के गुजरने का क्या मतलब है?’ शर्मा ने कहा ‘हमें और सावधानी बरतनी चाहिए. हम कोई जोखिम उठाना गवारा नहीं कर सकते.’ 

सन 1995 में जब नरसिम्हा राव ने परमाणु विस्फोट करने का फैसला लिया था. तो अमेरिकन उपग्रहों को ताजा बिछाए गए तारों से भारत के  इरादों के बारे में पता चल गया था, उस समय अमेरिकी उपग्रहों की नजर से बचने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में बालू रेत का उपयोग किया गया था, लेकिन बड़ी संख्या में वाहनों के मूवमेंट ने अमेरिकियों को सतर्क कर दिया था!

वर्ष 1998 में भी सीआईए ने पोखरण के ऊपर चार उपग्रह लगा रखे थे! लेकिन परीक्षण से कुछ समय पहले सिर्फ एक उपग्रह पोखरण की निगरानी कर रहा था और वह भी सुबह 8:00 से 11:00 के बीच उस क्षेत्र के ऊपर से गुजरता था! 

परीक्षण से  एक रात पहले उपग्रह से प्राप्त चित्रों की समीक्षा के लिए सिर्फ एक अमेरिकी  विश्लेषक की ड्यूटी लगाई गई, उसे पोखरण से खींची कुछ तस्वीरों को अगले दिन अपने अधिकारियों को दिखाने के लिए चुना था, लेकिन जब तक अधिकारी उन तस्वीरों का विश्लेषण करते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी!

11 मई को परीक्षण वाले दिन एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रधानमंत्री निवास पर बृजेश मिश्रा को फोन कर बताया, कि हवा की रफ्तार धीमी पड़ रही है और अगले 1 घंटे में परीक्षण किया जा सकता है, उधर पोखरण में Pokhran Nuclear Test के लिए  मौसम विभाग की रिपोर्ट आ गई थी, कि सब कुछ ठीक है कि 3:45 पर मॉनिटर पर लाल रोशनी आई और 1 सेकेंड के अंदर तीनों मॉनिटर पर चौंधियाने वाली रोशनी दिखाई दी , अचानक सभी तस्वीरें फ्रीज हो गई, जो बता रहा था, कि शाफ्ट के अंदर लगाए गए कैमरे विस्फोट से नष्ट हो गए थे! 

धरती के अंदर का तापमान लाखों डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया, विस्फोट  ने हॉकी के मैदान के बराबर बालू को हवा में उठा दिया! उस समय हेलीकॉप्टर से हवा में उड़ रहे डीआरडीओ के कर्नल उमंग कपूर ने भी धूल के सैलाब को उठते हुए देखा, नीचे वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि उनके पैर के नीचे धरती पूरी तरह से हिल रही है, वहां और देशभर में मौजूद दर्जनों Seismograph (भूकंप-सूचक यंत्र) की सुईया पूरी तरह से हिल गई थी! 

वैज्ञानिक अपने बंकरों से निकलकर बाहर की तरफ दौड़े, ताकि वह रेत की दीवार को उठने और गिरने का ना भुलाये जाने वाला दृश्य अपनी आंखों से देख सकें! सुरक्षित दूरी से यह दृश्य देख रहे सैकड़ों सैनिकों ने रेत का गुबार  उठते ही गगनभेदी नारा लगाया, भारत माता की जय!

वहां मौजूद वैज्ञानिक के. संथानम ने बताया “पूरा मंजर देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए!” चिदंबरम ने बहुत जोर से कलाम से हाथ मिलाते हुए कहा ‘मैंने आपसे कहा था हम 24 साल बाद भी यह काम दोबारा अंजाम दे सकते हैं!’ कलाम के मुंह से निकला हमने दुनिया की परमाणु शक्तियों का  प्रभुत्व समाप्त कर दिया है!

अब एक अरब लोगों के हमारे देश को कोई नहीं कह सकता क़ि उसे क्या करना है, अब हम तय करेंगे कि हमें क्या करना है! उधर प्रधानमंत्री निवास में फोन के बगल में बैठे बृजेश मिश्रा ने पहली घंटी पर फोन उठाया, उन्होंने रिसीवर पर कलाम की  कांपती हुई आवाज सुनी  “सर वी हैव डन इट”! मिश्रा फोन पर चिल्लाए गॉड ब्लेस यू !

बाद में बाजपेई ने कहा उस क्षण का वर्णन कर पाना मुश्किल है, लेकिन हमें अत्यंत खुशी और पूर्णता का एहसास हुआ बाद में अटल बिहारी वाजपेई के सचिव रहे शक्ति सिन्हा ने अपनी किताब  “Vajpayee The Years That Changed India” में  लिखा, कि वाजपेई मंत्रिमंडल के चार मंत्री लालकृष्ण आडवाणी,  जॉर्ज फर्नांडिस, यशवंत सिन्हा, और जसवंत सिंह वाजपेई निवास में डाइनिंग टेबल के चारों ओर बैठे हुए थे, सोफे पर बैठे हुए प्रधानमंत्री वाजपेई सोच में डूबे हुए थे, कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था.

शायद इसके पीछे पुरानी  भारतीय धारणा थी कि  किसी चीज के बारे में तब तक कुछ ना बोला जाए जब तक वह हो ना जाए, जब खबर पहुंची तो उसका असर इलेक्ट्रिक था, वहां मौजूद लोगों के चेहरे पर खुशी साफ पढ़ी जा सकती थी, लेकिन ना तो कोई उछला और ना ही किसी ने किसी को गले लगाया या पीठ थपथपाई, लेकिन उस कमरे में मौजूद लगभग हर शख्स की आंखों में  आंसू थे, बहुत देर बाद वाजपेई के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी थी. 

तनाव से मुक्त होने के बाद उन्होंने जोर का ठहाका लगाया था. उसके बाद वाजपेई अपने घर से बाहर निकले थे, जहां लॉन में सभी प्रमुख संचार माध्यमों के संवाददाता मौजूद थे, वाजपेई के मंच पर पहुंचने से कुछ सेकेंड पहले प्रमोद महाजन ने उस पर भारत का तिरंगा झंडा रख दिया था. 

उस मौके पर दी जाने वाली प्रेस रिलीज को जसवंत सिंह बहुत पहले तैयार कर चुके थे, वाजपेई ने परमाणु परीक्षण की जानकारी पत्रकारों को दी ! 2 दिन बाद पोखरण की धरती एक बार फिर हिली और भारत ने दो और परमाणु परीक्षण किए! एक दिन बाद प्रधानमंत्री वाजपेई ने घोषणा की, भारत परमाणु हथियार संपन्न देश  है!

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